अक्षय नवमी: जानें कैसे अष्टलक्ष्मी स्तोत्र का पाठ आपके जीवन में ला सकता है अपार समृद्धि और खुशियां

अक्षय नवमी का पर्व हिंदू धर्म में अत्यंत शुभ और महत्वपूर्ण माना जाता है।इस दिन अष्टलक्ष्मी स्तोत्र का पाठ अवश्य करना चाहिए। यह कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाया जाता है, और इस दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की आराधना की जाती है। मान्यता है कि इस दिन किया गया हर पुण्य कार्य, जैसे दान, पूजा या अष्टलक्ष्मी स्तोत्र का पाठ, अनंत फल देने वाला होता है। यदि आप अपने जीवन में सुख, शांति, और समृद्धि की वृद्धि चाहते हैं, तो इस दिन अष्टलक्ष्मी स्तोत्र का पाठ अवश्य करना चाहिए।

अष्टलक्ष्मी स्तोत्र

अक्षय नवमी 2024 का शुभ मुहूर्त

इस वर्ष अक्षय नवमी 10 नवंबर को मनाई जाएगी। इस दिन पूजा का विशेष शुभ मुहूर्त सुबह 6:40 बजे से दोपहर 12:05 बजे तक रहेगा। कार्तिक मास की नवमी तिथि 9 नवंबर की रात 10:45 से शुरू होगी और 10 नवंबर की रात 9:01 बजे समाप्त होगी। इसलिए 10 नवंबर को दिन भर पूजा और शुभ कार्य किए जा सकते हैं।

अष्टलक्ष्मी स्तोत्र का महत्व और इसके लाभ

अष्टलक्ष्मी, देवी लक्ष्मी के आठ रूप हैं जो जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में समृद्धि और सफलता का प्रतीक हैं। अष्टलक्ष्मी के रूपों में आद्य लक्ष्मी, धान्यलक्ष्मी, धैर्यलक्ष्मी, गजलक्ष्मी, संतानलक्ष्मी, विजयलक्ष्मी, विद्यालक्ष्मी, और धनलक्ष्मी शामिल हैं। इन आठों स्वरूपों की पूजा से व्यक्ति को असीमित धन, स्वास्थ्य, ज्ञान, और विजय की प्राप्ति होती है।

अष्टलक्ष्मी स्तोत्र का पाठ कैसे करें?

  1. स्नान और पवित्रता: अक्षय नवमी के दिन प्रातःकाल स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  2. माता लक्ष्मी की स्थापना: पूजा स्थल पर माता लक्ष्मी की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें और दीपक जलाएं।
  3. अष्टलक्ष्मी स्तोत्र का पाठ: इस स्तोत्र का शांत मन से पाठ करें और हर लक्ष्मी स्वरूप का स्मरण करें।
  4. भोग अर्पण: माता लक्ष्मी को मिठाई, आंवला, और अन्य प्रसाद अर्पित करें।
  5. दान का महत्व: इस दिन दान करना अत्यधिक फलदायी होता है। गरीबों और जरूरतमंदों को भोजन, वस्त्र, या धन का दान करें।

अष्टलक्ष्मी स्तोत्र के आठ मंत्र

  1. आद्य लक्ष्मी: सुख, शांति, और ज्ञान का प्रतीक।
  2. धान्यलक्ष्मी: अन्न और समृद्धि की देवी, जो हर घर में सुख-समृद्धि भर देती हैं।
  3. धैर्यलक्ष्मी: संकल्प और धैर्य की देवी, जीवन में दृढ़ता और आत्मविश्वास देती हैं।
  4. गजलक्ष्मी: विजय और सम्मान की देवी।
  5. संतानलक्ष्मी: संतान सुख और परिवार में खुशी का आशीर्वाद देने वाली।
  6. विजयलक्ष्मी: प्रत्येक कार्य में विजय प्राप्ति का प्रतीक।
  7. विद्यालक्ष्मी: ज्ञान और शिक्षा का आशीर्वाद देने वाली।
  8. धनलक्ष्मी: जीवन में धन की कमी नहीं होने देती और समृद्धि का वरदान देती हैं।

अष्टलक्ष्मी स्तोत्र का पाठ करने से होने वाले लाभ

अष्टलक्ष्मी स्तोत्र का पाठ करने से जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में उन्नति होती है। इससे आपके घर में आर्थिक समृद्धि, पारिवारिक सुख, शारीरिक स्वास्थ्य, और मानसिक शांति की प्राप्ति होती है।

आंवला वृक्ष की पूजा का महत्व

अक्षय नवमी के दिन आंवला वृक्ष की पूजा भी की जाती है। आंवला को भगवान विष्णु का निवास माना जाता है और इसे पूजने से पितरों का आशीर्वाद मिलता है। आंवले का सेवन स्वास्थ्य के लिए भी लाभकारी है, क्योंकि यह रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है।

निष्कर्ष

अक्षय नवमी का पर्व आपके जीवन में स्थायी सुख, समृद्धि और सफलता का द्वार खोल सकता है। इस दिन अष्टलक्ष्मी स्तोत्र का पाठ करके देवी लक्ष्मी के आठ स्वरूपों का आशीर्वाद प्राप्त करें और अपने जीवन को खुशियों से भर दें।

यह पर्व जीवन में न केवल आर्थिक समृद्धि लाता है बल्कि संपूर्ण संतुलन और सुख का भी प्रतीक है।


‘अष्टलक्ष्मी स्तोत्र’ (Ashtlaxmi Stotra) 

आद्य लक्ष्मी
सुमनस वन्दित सुन्दरि माधवि, चन्द्र सहोदरि हेममये,
मुनिगण वंदित मोक्ष प्रदायिनी, मंजुल भाषिणी वेदनुते।
पंकजवासिनी देव सुपूजित, सद्गुण वर्षिणी शान्तियुते,
जय जय हे मधुसूदन कामिनी, आद्य लक्ष्मी परिपालय माम्।।

धान्यलक्ष्मी
असि कलि कल्मष नाशिनी कामिनी, वैदिक रूपिणी वेदमयी,
क्षीर समुद्भव मंगल रूपणि, मन्त्र निवासिनी मन्त्रयुते।
मंगलदायिनि अम्बुजवासिनि, देवगणाश्रित पादयुते,
जय जय हे मधुसूदन कामिनी, धान्यलक्ष्मी परिपालय माम्।।

धैर्यलक्ष्मी
जयवर वर्षिणी वैष्णवी भार्गवी, मन्त्र स्वरूपिणि मन्त्र,
सुरगण पूजित शीघ्र फलप्रद, ज्ञान विकासिनी शास्त्रनुते।
भवभयहारिणी पापविमोचिनी, साधु जनाश्रित पादयुते,
जय जय हे मधुसूदन कामिनी, धैर्यलक्ष्मी परिपालय माम्।।

गजलक्ष्मी
जय जय दुर्गति नाशिनी कामिनी, सर्व फलप्रद शास्त्रीय,
रथ गज तुरग पदाति समावृत, परिजन मण्डित लोकनुते।
हरिहर ब्रह्म सुपूजित सेवित, ताप निवारिणी पादयुते,
जय जय हे मधुसूदन कामिनी, गजरूपेणलक्ष्मी परिपालय माम्।। 

संतानलक्ष्मी
अयि खगवाहिनि मोहिनी चक्रिणि, राग विवर्धिनि ज्ञानमये,
गुणगणवारिधि लोकहितैषिणि, सप्तस्वर भूषित गाननुते।
सकल सुरासुर देवमुनीश्वर, मानव वन्दित पादयुते,
जय जय हे मधुसूदन कामिनी, सन्तानलक्ष्मी परिपालय माम्।।

विजयलक्ष्मी
जय कमलासिनी सद्गति दायिनी, ज्ञान विकासिनी ज्ञानमयो,
अनुदिनम र्चित कुमकुम धूसर, भूषित वसित वाद्यनुते।
कनकधरास्तुति वैभव वन्दित, शंकरदेशिक मान्यपदे,
जय जय हे मधुसूदन कामिनी, विजयलक्ष्मी परिपालय माम्।।

विद्यालक्ष्मी
प्रणत सुरेश्वरि भारति भार्गवि, शोक विनाशिनी रत्नम,
मणिमय भूषित कर्णभूषण, शान्ति समावृत हास्यमुखे।
नवनिधि दायिनि कलिमलहारिणि, कामित फलप्रद हस्तयुते,
जय जय हे मधुसूदन कामिनी, विद्यालक्ष्मी सदा पालय माम्।।

धनलक्ष्मी
धिमिधिमि धिन्दिमि धिन्दिमि, दिन्धिमि दुन्धुभि नाद सुपूर्णमये,
घुमघुम घुंघुम घुंघुंम घुंघुंम, शंख निनाद सुवाद्यनुते।
वेद पुराणेतिहास सुपूजित, वैदिक मार्ग प्रदर्शयुते,
जय जय हे मधुसूदन कामिनी, धनलक्ष्मी रूपेणा पालय माम्।।
अष्टलक्ष्मी नमस्तुभ्यं वरदे कामरूपिणि।
विष्णु वक्ष:स्थलारूढ़े भक्त मोक्ष प्रदायिनी।।
शंख चक्रगदाहस्ते विश्वरूपिणिते जय:।
जगन्मात्रे च मोहिन्यै मंगलम् शुभ मंगलम्।।
।।इति श्रीअष्टलक्ष्मी स्तोत्रं सम्पूर्णम्।।

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