छठी मैया कौन हैं? जानिए सूर्य देव और छठी मैया की पूजा विधि

छठ पूजा का पर्व हर साल कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को धूमधाम से मनाया जाता है। इस पूजा का महत्व खासकर बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश के क्षेत्रों में अधिक होता है, लेकिन अब ये पूजा देशभर में प्रसिद्ध हो चुकी है। छठ पूजा सूर्य देव और छठी मैया को समर्पित है। इस अवसर पर भक्तगण व्रत रखते हैं और उगते तथा डूबते सूर्य को अर्घ्य देकर अपनी मनोकामनाएं पूरी होने की प्रार्थना करते हैं।

छठी मैया कौन हैं?

छठी मैया को “प्रकृति देवी” के रूप में पूजा जाता है। हिन्दू धर्म में इन्हें बच्चों की रक्षा करने वाली देवी माना जाता है। यह कहा जाता है कि छठी मैया सूर्य देव की बहन हैं, और इसीलिए इस व्रत में सूर्य की भी पूजा की जाती है। मान्यता है कि छठी मैया अपनी कृपा से बच्चों को लंबी उम्र और सुखद जीवन प्रदान करती हैं।

छठ पूजा में छठी मैया और सूर्य देवता को समर्पित पूजा विधि का खास महत्व है, क्योंकि यह व्रत संतान की खुशहाली, सुख, और समृद्धि के लिए किया जाता है।

सूर्य देव की पूजा का महत्व

सूर्य देव को प्रकृति के पालनहार और ऊर्जा के स्रोत के रूप में माना जाता है। उन्हें संसार के सभी जीवों को जीवन देने वाला कहा गया है। इस पर्व पर सूर्य की उपासना इसलिए की जाती है क्योंकि वे सभी जीवों को जीवन प्रदान करते हैं और संतान की रक्षा करते हैं।

छठ पूजा विधि

छठ पूजा में चार दिनों की पूजा होती है। इसमें विशेष प्रकार के नियमों और परंपराओं का पालन किया जाता है:

1. नहाय-खाय

पहले दिन को नहाय-खाय के नाम से जाना जाता है। इस दिन व्रती (व्रत करने वाला) नदी, तालाब, या किसी पवित्र जलस्रोत में स्नान कर साफ-सफाई का ध्यान रखते हुए शुद्ध भोजन ग्रहण करते हैं। इस दिन कद्दू, चना दाल और चावल का भोजन प्रमुख रूप से किया जाता है।

2. लोहंडा और खरना

दूसरे दिन को लोहंडा और खरना कहा जाता है। इस दिन व्रती पूरा दिन उपवास रखते हैं और शाम को पूजा-अर्चना के बाद गन्ने के रस और गुड़ की खीर का प्रसाद बनाते हैं। इसके बाद ही व्रती भोजन ग्रहण करते हैं और पुनः निर्जल व्रत का संकल्प लेते हैं।

3. संध्या अर्घ्य

तीसरे दिन संध्या अर्घ्य का विशेष महत्व है। इस दिन सूर्यास्त के समय नदी या तालाब के किनारे दीप जलाए जाते हैं और सूर्य देव को पहला अर्घ्य दिया जाता है। महिलाएं छठी मैया और सूर्य देव की पूजा करती हैं और गंगा जल में खड़े होकर सूर्यास्त को अर्घ्य अर्पित करती हैं। इस समय गंगा घाटों पर भक्तों का तांता लगा रहता है और माहौल भक्तिमय हो जाता है।

4. उषा अर्घ्य

चौथे और अंतिम दिन को उषा अर्घ्य कहा जाता है। इस दिन सूर्योदय के समय जल में खड़े होकर उगते हुए सूर्य को अर्घ्य अर्पित किया जाता है। इसके बाद व्रत का पारण किया जाता है और प्रसाद वितरित किया जाता है।

छठ पूजा में उपयोग किए जाने वाले प्रसाद

छठ पूजा में विशेष प्रकार के प्रसाद का महत्व होता है। गन्ना, ठेकुआ, चावल के लड्डू, केला, और नारियल को प्रसाद में शामिल किया जाता है। ये प्रसाद विशेष रूप से शुद्धता का प्रतीक होते हैं और इन्हें मिट्टी के बर्तनों में बनाया जाता है।

छठ पूजा के नियम और सावधानियां

छठ पूजा के दौरान व्रतियों को शुद्धता और संयम का विशेष ध्यान रखना होता है। इस व्रत के दौरान नमक का सेवन वर्जित होता है और खासकर व्रती महिलाएं इस दौरान कठिन नियमों का पालन करती हैं। पूजा के दौरान पूरे घर की सफाई की जाती है, और प्रसाद को तैयार करते समय पवित्रता बनाए रखने पर जोर दिया जाता है।

छठ पूजा का महत्व

छठ पूजा का महत्व न केवल धार्मिक बल्कि आध्यात्मिक भी है। यह पर्व परिवार की सुख-शांति, समृद्धि और संतान की लंबी आयु के लिए किया जाता है। इसके अलावा, छठ पूजा में सूर्य देव और छठी मैया को प्रसन्न कर जीवन में स्वास्थ्य, उन्नति और खुशहाली की प्रार्थना की जाती है।

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