आम्रपाली की कहानी | नगर की हवस ने बना दिया वेश्या

आम्रपाली को इतिहास की सबसे सुंदर वेश्या कहा जाता है, और भगवान बुद्ध के पवित्र हाथों से उनके संघ में शरण पाने वाली पहली वैश्या होने का ऐतिहासिक गर्व भी आम्रपाली के ही हिस्से में आता है। वह इतनी सुंदर थी कि उसके लिए दुनिया के पहले गणतंत्र लिच्छवी और भारत के सबसे शक्तिशाली साम्राज्य मगध के बीच संघर्ष प्रारंभ हो गया था। मगध का सम्राट बिंबिसार उसके रूप पर इतना मोहित था कि वह भेष बदलकर वैशाली की गलियों में एक सामान्य मनुष्य की तरह टहलता रहता था। 

आम्रपाली

फिर आम्रपाली के जीवन में बहुत सारी घटनाओं के बीच एक रोचक घटना घटती है। उसके बगीचे में भगवान बुद्ध अपने शिष्यों के साथ पधारते हैं, और फिर घटनाएं इस तरह से रोचक मोड़ लेती हैं कि सुनकर आनंद आ जाता है। अंत में, यह कहानी आपको भावुक कर देती है, और आपकी आंखों से आंसू निकल आएंगे। इस कहानी को विस्तारपूर्वक जानने के लिए इस वीडियो को अंत तक सुनिए, और हमारे चैनल को सब्सक्राइब करके इस वीडियो को लाइक और शेयर जरूर कीजिए। 

यह कहानी लगभग ३००० साल पहले की है। वैशाली लिच्छवी गणतंत्र की एक प्रमुख नगरी और रियासत थी। नगर व्यापारियों, जौहरियों, शिल्पकारों और देश-विदेश के यात्रियों से भरा हुआ था। नगर का प्रधान बाजार “श्रृष्टि चतवर ” था, जहां बड़े-बड़े व्यापारियों की कोठियां थीं, जिनकी व्यापारिक शाखाएं समस्त उत्तर भारत में फैली हुई थीं। चूंकि नगर इतना महत्वपूर्ण था, उसकी रक्षा के लिए सैनिक भी वहां मौजूद होते थे। 

आम्रपाली

उन्हीं सैनिकों में से एक था महा-नामन। वह नगर की रक्षा के लिए रात में पहरे पर नियुक्त होता था। हर रोज शाम को वह पहरे पर आता और सुबह की पहली किरण के साथ अपने घर चला जाता। महा-नामन की शादी हुए बहुत समय बीत चुका था, लेकिन उसने अभी तक संतान का मुख नहीं देखा था। एक दिन, वह हमेशा की तरह पहरे पर डटा रहा, लेकिन सुबह होते-होते उसकी आंख झपक गई। उसी समय सुबह की टुकड़ी वहां पहुंची और एक युवक ने महा-नामन को जगाते हुए कहा, “जागिए महा-नामन!”

amrapali

आज की सुबह उसके लिए एक नई सुबह लेकर आई थी। जैसे ही वह अपने घर के पास पहुंचा, उसने अपने बगल के आम के पेड़ के नीचे सफेद कपड़ों में लिपटी हुई एक नवजात बच्ची देखी। उसे देखकर ऐसा लग रहा था कि रात के अंतिम पहर में उसकी मां ने उसे दुग्ध पान कराया होगा और फिर वहां छोड़कर चली गई थी। महा-नामन ने बच्ची को देखा और उसका पिता-हृदय जाग गया। उसने अपनी पत्नी को बुलाया, और दोनों ने उस बच्ची को अपना लिया। उन्होंने उसका नाम रखा “आम्रपाली,” क्योंकि वह आम के पेड़ के नीचे मिली थी।

समय बीतता गया और आम्रपाली बड़ी होती गई। वैशाली से उत्तर-पश्चिम एक छोटे से गांव में महा-नामन अपनी पत्नी के साथ अपनी संतान को पालने लगा। आम्रपाली जब ११ वर्ष की हुई, तो वह अपने रूप और सुंदरता से सबको मोहित कर देती थी। लेकिन जल्द ही महा-नामन को चिंता सताने लगी, क्योंकि लिच्छवी गणराज्य का नियम था कि अत्याधिक सुंदर लड़कियों को नगर-वैश्या बना दिया जाता था। महा-नामन अपनी पुत्री को इस भय से बचाने के लिए राजधानी छोड़कर गांव में आ बसा था, लेकिन उसकी कमाई धीरे-धीरे खत्म हो रही थी। 

महा-नामन ने अपनी पुरानी नौकरी की याचना करने का निश्चय किया और अपनी बेटी आम्रपाली के साथ वैशाली की ओर चल पड़ा। रास्ते में कठिनाइयों का सामना करते हुए वे दोनों धीरे-धीरे बढ़ते चले जा रहे थे। अचानक घोड़ों की टापों की आवाज सुनाई दी, और वे एक पेड़ के नीचे छिप गए। सैनिकों ने महा-नामन को घुसपैठिया समझकर मार दिया, और आम्रपाली अनाथ हो गई।

सैनिकों ने आम्रपाली को देखा, और उसकी सुंदरता से प्रभावित होकर उसे लिच्छवी गणराज्य के नियमों के अनुसार नगर-वैश्या बनाने का निर्णय लिया। ११ वर्ष की आयु में आम्रपाली नगर-वैश्या बनने के सभी गुणों में निपुण हो चुकी थी। उसकी सुंदरता और कला के चर्चे दूर-दूर तक फैल गए। उसके महल की शान-शौकत और उसकी लोकप्रियता की कोई तुलना नहीं थी। 

धीरे-धीरे आम्रपाली की सुंदरता की खबर मगध के सम्राट बिंबिसार तक पहुंची। बिंबिसार उसकी सुंदरता से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने लिच्छवी गणराज्य को एक पत्र भेजा, जिसमें उन्होंने आम्रपाली को अपने पास भेजने का आदेश दिया, अन्यथा युद्ध की धमकी दी। लिच्छवी गणराज्य ने बिंबिसार को उत्तर दिया कि आम्रपाली उनका गर्व है, और वे उसे किसी भी कीमत पर नहीं छोड़ेंगे। 

बिंबिसार ने युद्ध की तैयारी कर ली। लेकिन इससे पहले कि युद्ध शुरू होता, बिंबिसार का एक गुप्तचर आम्रपाली से मिलकर एक योजना बनाता है। गुप्तचर बिंबिसार को आम्रपाली से मिलवाता है, और दोनों पहली बार मिलते हैं। 

आम्रपाली ने बिंबिसार से निवेदन किया कि वह एक साधारण दासी है, और उसके कारण लोगों का खून बहना उचित नहीं है। बिंबिसार ने उसे मगध की साम्राज्ञी बनाने की पेशकश की, लेकिन आम्रपाली ने विनम्रता से उसे ठुकरा दिया। उसने बिंबिसार से कहा कि यदि वे सचमुच उससे प्रेम करते हैं, तो वे वैशाली पर आक्रमण न करें। 

इस मुलाकात के बाद, बिंबिसार ने आम्रपाली की बात मान ली और वैशाली पर आक्रमण नहीं किया। बाद में, आम्रपाली भगवान बुद्ध के संपर्क में आईं, और उनके उपदेशों से प्रभावित होकर उन्होंने बुद्ध के संघ में शरण ली। आम्रपाली का जीवन इस प्रकार एक साधारण वेश्या से बौद्ध संघ की अनुयायी बनने की ओर मुड़ गया।

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