हिंदू धर्म में एकादशी व्रत का अत्यंत महत्व है। हर माह दो एकादशी आती हैं, लेकिन इन सभी में निर्जला एकादशी को सबसे कठिन, फलदायी और विशेष माना गया है। यह व्रत न केवल आध्यात्मिक दृष्टि से श्रेष्ठ है, बल्कि वैज्ञानिक दृष्टि से भी शरीर और मन को शुद्ध करने वाला माना जाता है। इस लेख में हम जानेंगे निर्जला एकादशी व्रत का महत्व, व्रत कथा, पूजन विधि, नियम और इसके चमत्कारी लाभ।

Table of Contents
🌙 निर्जला एकादशी कब होती है?
निर्जला एकादशी ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को आती है, जो सामान्यतः मई-जून के महीने में होती है। यह व्रत भीमसेनी एकादशी या पांडव एकादशी के नाम से भी प्रसिद्ध है।
🌼 व्रत का नाम ‘निर्जला’ क्यों?
“निर्जला” शब्द का अर्थ है – बिना जल के। यानी इस व्रत में पानी तक ग्रहण नहीं किया जाता, जबकि अन्य एकादशियों में जल या फलाहार की अनुमति होती है। इस कठिन व्रत का पालन करने वाला व्यक्ति संपूर्ण वर्ष की एकादशियों के बराबर फल प्राप्त करता है। यही कारण है कि जो लोग साल भर व्रत नहीं कर पाते, वे केवल निर्जला एकादशी करके सभी एकादशियों का पुण्य अर्जित कर सकते हैं।
🙏 निर्जला एकादशी व्रत की पौराणिक कथा
महाभारत काल में जब श्रीव्यास जी ने भीमसेन को व्रत करने की सलाह दी, तब भीम ने कहा कि वे भोजन और जल के बिना नहीं रह सकते। तब व्यास जी ने कहा, “हे भीम! यदि तुम सभी एकादशियों का फल पाना चाहते हो तो सिर्फ एक दिन, निर्जला एकादशी पर उपवास करो और एक बूँद जल भी मत पीना।”
भीम ने इस कठिन व्रत को किया, और उसे अत्यंत पुण्य की प्राप्ति हुई। तभी से इसे “भीमसेनी एकादशी” भी कहा जाता है। यह व्रत यह सिखाता है कि संकल्प, श्रद्धा और आत्म-नियंत्रण से हम कोई भी कठिन साधना पूर्ण कर सकते हैं।
🕉️ व्रत की पूजन विधि (व्रत करने की विधि)
🔸 एक दिन पहले (दशमी तिथि):
- सात्विक भोजन करें और रात्रि में व्रत का संकल्प लें।
- तामसिक भोजन, लहसुन-प्याज, मांस-मदिरा से पूर्ण रूप से परहेज रखें।
🔸 एकादशी तिथि (मुख्य व्रत दिवस):
- ब्राह्म मुहूर्त में उठें और स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण करें।
- घर या मंदिर में भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
- पंचामृत से भगवान विष्णु का अभिषेक करें।
- तुलसी, पीले फूल, चंदन और प्रसाद अर्पित करें।
- ॐ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जाप करें।
- दिन भर उपवास रखें – न अन्न, न जल। अत्यंत आवश्यक होने पर तुलसी जल ग्रहण कर सकते हैं।
- शाम को दीपदान करें और व्रत कथा सुनें या पढ़ें।
- रात्रि में जागरण या विष्णु सहस्रनाम, श्रीमद्भगवद्गीता का पाठ करें।
🔸 द्वादशी तिथि (अगले दिन):
- सूर्योदय के बाद व्रत का पारण करें।
- ब्राह्मण को अन्न, वस्त्र, दक्षिणा और जल से भरा कलश दान करें।
- इसके पश्चात स्वयं भोजन करें।
🌟 व्रत के विशेष लाभ
- साल भर की एकादशियों का फल एक ही व्रत में प्राप्त होता है।
- जीवन में शांति, सुख और वैराग्य की भावना उत्पन्न होती है।
- पितृ दोष, कालसर्प दोष, ग्रह बाधाओं से मुक्ति मिलती है।
- आत्मा की शुद्धि होती है, और मन संयमित होता है।
- मृत्यु के बाद विष्णुलोक की प्राप्ति होती है – ऐसा शास्त्रों में उल्लेख है।
- रोग, दरिद्रता, कर्ज और पारिवारिक क्लेश से छुटकारा मिलता है।
🧘🏻♂️ वैज्ञानिक दृष्टिकोण से लाभ
- एक दिन जल व अन्न का त्याग करने से शरीर के पाचन अंगों को विश्राम मिलता है।
- शरीर की डिटॉक्स प्रक्रिया तीव्र होती है।
- मानसिक एकाग्रता बढ़ती है और आत्म-संयम की शक्ति विकसित होती है।
🪔 व्रत में क्या करना चाहिए और क्या नहीं?
✔️ क्या करें:
- विष्णु जी का पूजन करें।
- तुलसी दल का उपयोग करें।
- ब्राह्मण को जल, अन्न, वस्त्र का दान करें।
- व्रत कथा पढ़ें/सुनें।
- जरूरतमंदों को जल वितरण करें।
❌ क्या न करें:
- जल, अन्न या फलाहार भी न लें (निर्जला का पालन करें)।
- नींद में न रहें – रात्रि जागरण करें।
- झूठ, क्रोध, निंदा आदि से दूर रहें।
- मोबाइल/टीवी जैसे माया-मोह में लिप्त न रहें।
🌈 निष्कर्ष: क्यों करें निर्जला एकादशी व्रत?
निर्जला एकादशी व्रत मन, वाणी और कर्म की शुद्धि का माध्यम है। यह न केवल धार्मिक और आध्यात्मिक लाभ देता है, बल्कि आत्म-विकास का भी एक सशक्त साधन है। यदि श्रद्धा और नियमपूर्वक किया जाए, तो यह व्रत जीवन के समस्त संकटों को हर सकता है और मनुष्य को मोक्ष के मार्ग की ओर अग्रसर कर सकता है।
✨ जय श्रीहरि! जय विष्णु भगवान!
यदि आप इस व्रत को पूरी श्रद्धा और संयम के साथ करते हैं, तो निश्चित रूप से भगवान विष्णु की अनंत कृपा आप पर बनी रहती है। इस निर्जला एकादशी पर आइए, एक नई शुरुआत करें – संयम और भक्ति की ओर।