भगवद् गीता अध्याय 12, श्लोक 18-19: भक्ति में श्रेष्ठ पुरुष के गुण

भगवद् गीता इस लेख में हम आपको बताएंगे की कृष्ण ने अर्जुन को बताये भक्ति में उत्तम पुरुष के लक्षण ? भक्तिमान किसे कहेंगे ?

श्लोक का वर्णन
भगवद् गीता के अध्याय 12 के श्लोक 18-19 में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को भक्ति मार्ग पर चलने वाले आदर्श भक्त के लक्षण बताते हैं। इन श्लोकों में भक्तिमान, यानी भक्ति में लीन व्यक्ति के गुणों का वर्णन किया गया है।

श्लोक 18
समः शत्रौ च मित्रे च तथा मानापमानयोः।
शीतोष्णसुखदुःखेषु समः सङ्गविवर्जितः।।

अनुवाद:
जो व्यक्ति शत्रु और मित्र को समान दृष्टि से देखता है, मान और अपमान में एक जैसा रहता है, शीत-उष्ण (सर्दी-गर्मी) और सुख-दुःख में समभाव रखता है तथा सभी प्रकार की आसक्ति से मुक्त होता है, वही सच्चा भक्त है।

श्लोक 19
तुल्यनिन्दास्तुतिर्मौनी सन्तुष्टो येन केनचित्।
अनिकेतः स्थिरमतिर्भक्तिमान्मे प्रियो नरः।।

अनुवाद:
जो व्यक्ति निंदा और प्रशंसा में समान रहता है, मौन और चिंतनशील रहता है, जो भी प्राप्त हो, उसमें संतुष्ट रहता है, घर-परिवार से मोह रहित होता है और स्थिर चित्त से भगवान का ध्यान करता है, वही भक्त मुझे प्रिय है।


भक्तिमान के गुणों की व्याख्या
श्रीकृष्ण ने इन श्लोकों में भक्ति मार्ग पर चलने वाले श्रेष्ठ व्यक्ति की विशेषताओं को विस्तार से समझाया है।

  1. समभाव:
    भक्त वह है जो शत्रु और मित्र के प्रति समान दृष्टि रखता है। वह किसी से शत्रुता नहीं करता और किसी के साथ पक्षपात नहीं करता। मान-अपमान, सुख-दुःख, और सर्दी-गर्मी जैसी परिस्थितियों में भी उसकी भावनाएं स्थिर रहती हैं।
  2. आसक्ति रहित:
    भक्त सांसारिक वस्तुओं से आसक्त नहीं होता। न तो उसे धन, सुख, या भौतिक सुखों में कोई मोह होता है और न ही वह किसी चीज को पाने के लिए लालायित होता है।
  3. निंदा और प्रशंसा में समान:
    सच्चा भक्त न तो किसी की निंदा से विचलित होता है और न ही प्रशंसा से उत्साहित। वह आत्मनियंत्रित और शांत रहता है।
  4. मौन और संतुष्ट:
    भक्त भगवान की लीलाओं और गुणों का चिंतन करता है। वह अपने भीतर मौन का पालन करता है और जो भी उसे प्राप्त होता है, उसमें संतुष्ट रहता है।
  5. ममता रहित:
    भक्त अपने परिवार और घर के प्रति मोह रहित होता है। वह अपने कर्तव्यों का पालन करता है, लेकिन उसमें किसी प्रकार का आसक्त भाव नहीं रखता।

श्रीकृष्ण का संदेश:
इन श्लोकों के माध्यम से श्रीकृष्ण यह स्पष्ट करते हैं कि भक्ति केवल भगवान के प्रति प्रेम नहीं है, बल्कि जीवन में स्थिरता, समभाव, और आत्मिक संतुलन का अभ्यास भी है। ऐसे व्यक्ति जो इन गुणों को अपने जीवन में अपनाते हैं, वे सच्चे भक्त कहलाते हैं और भगवान के प्रिय होते हैं।

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