वैदिक पंचांग के अनुसार, कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की देवोत्थान एकादशी यानी ग्यारहवें दिन से पंचक की शुरुआत होती है। यह समय विशेष रूप से धार्मिक गतिविधियों और व्रतों के लिए महत्व रखता है। इस दिन से शुरू होकर पांच दिनों तक चलने वाला भीष्म पंचक भगवान श्री हरि विष्णु को समर्पित होता है, और धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इसे विशेष पूजा और ध्यान के लिए आदर्श समय माना जाता है।
भीष्म पंचक का महत्व
भीष्म पंचक का नाम महाभारत के महान पात्र भीष्म पितामह के नाम पर पड़ा है। भीष्म पितामह ने अपने जीवन के अंतिम समय में इन पांच दिनों का पालन किया था। विशेष रूप से, यह व्रत श्री विष्णु की पूजा और ध्यान के लिए समर्पित होता है। भीष्म पंचक के पहले दिन से लेकर अंतिम दिन तक विशेष धार्मिक कर्म किए जाते हैं, जिनका पालन हर भक्त को श्रद्धा और निष्ठा से करना चाहिए।
भीष्म पंचक के पांच दिनों का महत्व
- पहला दिन (देवोत्थान एकादशी)
देवोत्थान एकादशी के दिन भगवान विष्णु के चरणों में कमल के फूल अर्पित करना चाहिए। यह दिन विशेष रूप से भगवान विष्णु की पूजा और ध्यान का है, और इस दिन से पंचक की शुरुआत होती है। भक्तों को इस दिन विशेष रूप से उपवास रखना चाहिए और भगवान के नाम का जाप करना चाहिए। - दूसरा दिन (तुलसी विवाह)
पंचक के दूसरे दिन तुलसी विवाह का आयोजन किया जाता है। इस दिन तुलसी के पौधे को भगवान श्री विष्णु के साथ विवाह के रूप में पूजित किया जाता है। इसके साथ ही भगवान विष्णु के जांघ पर बिल्व पत्र अर्पित करने की परंपरा है, जिससे भगवान के प्रति श्रद्धा और भक्ति में वृद्धि होती है। - तीसरा दिन (इत्र अर्पित करना)
तीसरे दिन भगवान विष्णु के नाभि पर इत्र अर्पित करना चाहिए। इसे पूजा में एक विशेष रस्म माना जाता है, जो भगवान को प्रसन्न करने के लिए की जाती है। इस दिन विशेष रूप से भगवान श्री विष्णु का ध्यान और पूजा करनी चाहिए ताकि जीवन में सुख-समृद्धि और शांति का वास हो। - चौथा दिन (मणिकर्णिका स्नान)
चौथे दिन मणिकर्णिका स्नान करना अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह स्नान खासतौर पर श्रद्धालुओं द्वारा पवित्रता के लिए किया जाता है। इस दिन भगवान विष्णु के कंधे पर गुड़हल का फूल अर्पित करना चाहिए। यह क्रिया भगवान को प्रसन्न करने के लिए की जाती है। - पाँचवां दिन (कार्तिक पूर्णिमा)
पंचक के पांचवें और अंतिम दिन कार्तिक पूर्णिमा का व्रत रखा जाता है। यह दिन विशेष रूप से भगवान विष्णु की पूजा और उपासना का है। इस दिन भगवान श्री विष्णु के सिर पर मालती के फूल अर्पित किए जाते हैं। कार्तिक पूर्णिमा पर विशेष रूप से दीप दान करने की परंपरा भी है, जो जीवन में समृद्धि और उजाले का प्रतीक है।
क्या करना चाहिए भीष्म पंचक के दौरान?
भीष्म पंचक के दौरान यह सलाह दी जाती है कि भक्त किसी भी प्रकार के अनाज का सेवन न करें, बल्कि दूध और पानी का सेवन करें। इसके साथ ही, पांच दिनों तक उपवास रखने की भी परंपरा है। इन दिनों में भगवान विष्णु के नाम का जप और पूजा से जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, इस व्रत को श्रद्धा और विश्वास के साथ करने से जीवन में सुख, समृद्धि और पुण्य की प्राप्ति होती है।
निष्कर्ष
भीष्म पंचक का पर्व एक अत्यंत महत्वपूर्ण धार्मिक अवसर है, जो भगवान श्री विष्णु के पूजन के लिए समर्पित है। इसे श्रद्धा और विश्वास से मनाने से जीवन में शांति, समृद्धि और सुख की प्राप्ति होती है। इस दौरान किए गए व्रत, पूजा और ध्यान का विशेष महत्व है, और इनका पालन करने से पुण्य की प्राप्ति होती है। अतः, इस पावन अवसर का भरपूर लाभ उठाते हुए, हमें भगवान विष्णु के चरणों में श्रद्धा और भक्ति को अर्पित करना चाहिए।