भगवद् गीता | अध्याय 12 | श्लोक 20 | सिद्ध भक्त और साधक भक्त में क्या अंतर है?


भगवद् गीता के अध्याय 12, श्लोक 20 में भगवान श्रीकृष्ण ने सिद्ध भक्त और साधक भक्त के बीच के अंतर को स्पष्ट किया है। इस श्लोक में उन्होंने यह बताया कि किस प्रकार साधक भक्त, जो श्रद्धा और भक्ति के साथ आध्यात्मिक मार्ग पर चलते हैं, उन्हें भगवान अत्यंत प्रिय मानते हैं।

श्लोक:
ये तु धर्म्यममृतमिदं यथोक्तं पर्युपासते।
श्रद्धधाना मत्परमा भक्तास्तेऽतीव मे प्रियाः।।

अनुवाद:
जो भक्त श्रद्धा के साथ, मुझे ही परम लक्ष्य मानते हुए, पहले बताए गए धर्मरूपी अमृत का सेवन करते हैं, वे मुझे अत्यंत प्रिय हैं।


सिद्ध भक्त और साधक भक्त में अंतर

1. सिद्ध भक्त कौन हैं?

सिद्ध भक्त वे होते हैं जो भक्ति के चरम शिखर तक पहुँच चुके हैं।

  • उन्होंने जीवन में आत्म-साक्षात्कार प्राप्त कर लिया होता है।
  • उनकी भक्ति स्थिर और निष्काम होती है।
  • वे सांसारिक मोह-माया से पूरी तरह मुक्त रहते हैं।
  • उनके जीवन में केवल भगवान का चिंतन और उनकी सेवा ही लक्ष्य होता है।

2. साधक भक्त कौन हैं?

साधक भक्त वे हैं जो भक्ति के मार्ग पर चल रहे हैं और सिद्धि प्राप्त करने का प्रयास कर रहे हैं।

  • उनका जीवन अनुशासन और श्रद्धा से भरपूर होता है।
  • वे सिद्ध भक्तों के आदर्श गुणों का अनुसरण करते हैं।
  • उनकी भक्ति में समर्पण और श्रद्धा की प्रधानता होती है।
  • वे भगवान को अपना अंतिम लक्ष्य मानते हुए पूरी निष्ठा के साथ साधना करते हैं।

3. दोनों में मुख्य अंतर

  • सिद्ध भक्त अपने लक्ष्य को प्राप्त कर चुके हैं, जबकि साधक भक्त अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर होते हैं।
  • साधक भक्तों के भीतर सिद्ध भक्तों के प्रति आदर और श्रद्धा की भावना रहती है।

साधक भक्तों की विशेषता और भगवान का प्रियत्व

श्रीकृष्ण कहते हैं कि साधक भक्त, जो धर्मयुक्त अमृत का सेवन करते हैं, उन्हें वे अत्यंत प्रिय मानते हैं।

  • श्रद्धा और निष्ठा: साधक भक्त अपनी भक्ति में अडिग रहते हैं और अपने हर कार्य को भगवान के प्रति समर्पित करते हैं।
  • सिद्ध भक्तों के आदर्श का पालन: साधक भक्त, सिद्ध भक्तों के गुणों को आदर्श मानते हैं और उनका अनुसरण करते हैं।
  • धर्म का पालन: सात श्लोकों में बताए गए धर्म के अनुरूप साधक भक्त अपनी साधना करते हैं।

‘धर्म्यममृतमिदं यथोक्तं’ का अर्थ

श्रीकृष्ण ने जिन सात श्लोकों में भक्ति और भक्त के गुणों का वर्णन किया, वे धर्म के अनुरूप हैं। इन गुणों का पालन करना साधक भक्त का कर्तव्य है।

  • पर्युपासते: इस शब्द का अर्थ है श्रद्धापूर्वक भक्ति करना और धर्मयुक्त जीवन जीना।
  • ऐसे भक्त भगवान की कृपा के पात्र होते हैं।

भगवान को साधक भक्त क्यों अधिक प्रिय हैं?

श्रीकृष्ण कहते हैं कि साधक भक्त, जो सिद्धि प्राप्त करने के मार्ग पर हैं, उन्हें वे अत्यंत प्रिय मानते हैं।

  • इसका कारण यह है कि साधक भक्त का समर्पण और परिश्रम भगवान के प्रति उनकी निष्ठा को दर्शाता है।
  • साधक भक्तों की साधना और प्रयास भगवान को प्रभावित करते हैं।

निष्कर्ष

सिद्ध भक्त और साधक भक्त दोनों ही भगवान के प्रिय हैं, लेकिन साधक भक्तों की निष्ठा और प्रयास श्रीकृष्ण को अत्यधिक प्रिय बनाते हैं। साधक भक्त, जो श्रद्धा के साथ भक्ति मार्ग पर अग्रसर होते हैं और सिद्ध भक्तों के आदर्श का पालन करते हैं, भगवान को बेहद प्रिय होते हैं।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top